बांस की खेती के बारे में जानकारी
नमस्ते , दोस्तों आज कि इस पोस्ट में हम आपको गेहू , चावल , चना से अलग जानकारी देंगे। एक ऐसी खेती के बारे में जिसके बारे में आपने बहुत कम सुना और देखा होगा। दोस्तों हम बात कर रहे है बांस की खेती की। भगवन कृष्ण के हाथो में सजी हुई बांसुरी तो आपको याद ही रही होगी यानि आध्यात्म से लेकर जीवन के हर पहलु में मरण और विवाह भारतीय संस्कृति के हर पेहलु में बांस को सुभ माना जाता है। शादी , जनेयू , मुंडन में बांस की पूजा एवं बांस से मंडप बनाने के पीछे भी यही कारन है। हर तरफ बांस ने अपनी जगह बनाई तो जाहिर सी बात है इसके गुणों की list तो लम्बी ही होगी।
बांस की एक दुनिया का एक ऐसा मात्र पेड़ है जो किसी भी तरह के परिवेश में तेजी से विकसित हो सकता है। यानि बांस हमें यह संदेश देता है की परिस्थिति कैसी भी हो हमें रुकना नहीं है थमना नहीं है केवल चलते रहना है। अपने इसी गुण के कारन उसे उन्नति का प्रतिक और समृद्धि देने वाला माना जाता है। वैसे केवल भारतीय संस्कृति ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशो में बांस को बेहद सुभ माना जाता है। तेंगषुई जैसी विरासत में भी बांस को पवित्र माना गया है ऐसी मान्यता है की अगर आपको ख़ुशी चाहिए तो तीन बांस धन और समृद्धि चाहिए तो 5 बाँसो को लगाइए जब की रिश्तो में प्यार या शादी की दरकार है तो 2 बांसो को सुभ माना गया है। दोस्तों यह तो हुई बांस की खेती के बारे में जानकारी अब हम आपको बताते है की बांस की खेती कैसे की जाती है और बांस की खेती से कमाई कैसे करे।
अनुक्रम
- बांस की खेती
- बांस की खेती मे खाद का प्रयोग कैसे करें
- बांस की खेती मे सिंचाई की प्रक्रिया
- सरकारी योजनाएँ
- bamboo mission
बांस की खेती
बांस की खेती का प्रचलन हमारे देश मे ज्यादा पुराना नहीं. लेकिन अपने देश की मिट्टी और जलवायु दोनों ही इस प्रकार की है की बांस का पेड़ कही पर भी उगाया जा सकता है. आम तौर पर यह कई तरह के होते है लेकिन भारत मे इसकी चार तरह की किस्म को लगाया जा सकता है. और फायदा भी कमाया जा सकता है. लेकिन जब कोई चीज नई होती है तो शुरुआत मे कई तरह की दिक्कते आती है. जैसे कब किस मौसम मे इसे लगाया जाये, बुआई का तरीका यानि एक बांस से दुसरे बांस से बीज की कितनी दूरी रखी जाए और जब यह बड़े होने लगे यानि फसल लहलहाने लगे तब किस तरीके की खाद और कितना पानी दिया जाए.
बांस की खेती मे खाद का प्रयोग कैसे करें
अब बात उसकी जिसमे किसान बीज बोता है. ऐसे मे जब तक मिट्टी की शेहद अच्छी नहीं होंगी तबतक उसमे लगने वाली फसल भी अच्छी नहीं होंगी. ऐसे मे जरुरी है उसमे सही वक्त पर सही खाद का डाला जाना. दोस्तों हमें हर वक्त जैविक खाद और केमिकल खाद दोनों को मिलाकर इस्तेमाल करना चाहिए. केवल केमिकल खाद इस्तेमाल करने से जमीन ख़राब हो जाती है. पंजाब और हरियाणा मे कई ऐसी जमीन ज्यादा खाद देने से ख़राब हो गई. लम्बे समय तक जमीन को उपजाऊ रखना है तो जैविक खाद का इस्तेमाल अवश्य करें.
जैविक खाद मे वर्मी कम्पोस्ट का प्रमुख स्थान है. वर्मी कम्पोस्ट केंचुआ से तैयार की जाने वाली सबसे बेहतर खाद है. वर्मी कम्पोस्ट शहरी कचरे और सब्जी को मिलाकर बनाई जाने वाली खाद है.
बांस की खेती मे सिंचाई की प्रक्रिया
दोस्तों जल जीवन है. यह मनुष्यों के अलावा पशु, पक्षी यहाँ तक की खेती मे बहुत हद तक पानी पर निर्भर करती है. ज्यादा पानी फसल बर्बाद कर सकता है तो सही मात्रा मे पानी वरदान रूप साबित हो सकता है. बारिश के पानी के अलावा खेतो मे ट्यूबवेल के जरिए भी सिंचाई की जाती है.पानी का इस्तेमाल सही तरीके से किया जाए तो भविष्य मे पानी का संकट दूर हो सकता है. बांस की एक और खासियत है की वातावरण मे मौजूद हानिकारक रेडीऐसन को भी सोखता है. इसीलिए यह मोबाइल फ़ोन के टावर के दुश् प्रभाव को रोकने मे सक्षम है. सीधे ईंधन के रूप मे इस्तेमाल करने मे कार्बन बहुत कम इजात करता है. शायद इसी खुबिया की वजह से बांस को पर्यावरण जानकर उसे खरा सोना भी कहते है. और अब सरकार ने भी इसकी खेती को आधुनिक बनाने का निर्णय बनाया है.
सरकारी योजनाएँ
बांस के ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल को देखते हुए सरकारने इसको सामाजिक वाणकी में स्थान दिया है। इसके आलावा इसकी व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देने के लिए तमाम योजनाए भी शुरू की गई है। सरकारने इसके लिए हर जिले में कृषि विज्ञानं केंद्र बनाया हुआ है। बांस की खेती को लेकर किसानो में अभी भी जागरूकता की कमी है।
bamboo mission
कृषि मंत्रालय की तरफ से bamboo mission स्तःपित हुआ। जो साल 2006 में शुरू हुआ। जिसमे 5 साल में 568 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता का प्रावधान भी दिया गया। इस mission ने देश में लाखो लोगो को रोजगार मुहैया करने में मदद की। योजना आयोग के मुताबिक बांस की खेती से 5\करोड़ लोगो को रोजगार मील सकता है। इसके अतिरिक्त कई सामाजिक संगठनो ने भी सी दिशा में सराहनीय कार्य किए। हाल में भारत में बांस के तीन इंस्टीटिटयूट मौजूद है जिसमे पहला है देहरादून में फारेस्ट रिसर्च इंस्टीटुडे यह दूसरा भारत के लगभग सभी इलाकों में मौजूद है। स्टेट फारेस्ट डिपार्टमेंट जिसका मुख्यालय अरुणाचल प्रदेश स्थित ईटानगर के चरसा में है।
बांस के इस्तेमाल से लकड़ी के प्रयोग में कमी लाइ जा सकती है जिससे कीमती वनो को भी बचाया जा सकता है। अगर यदि बांस को विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जाए तो सालाना 7000 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है। इससे लकड़ी के लिए जंगलो पर पड़ने वाले दबाव पर भी कमी आएगी।
दोस्तों आपने देखा की बांस कितना कीमती होता है। जीवन के पहले पड़ाव से लेकर अंतिम पड़ाव तक बांस हमारे काम आता है। आपको हमारी यह पोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताये,धन्यवाद।
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